विचलित मन की व्यथा सुनाने
फुर्सत की खोज करता हूँ.
भीड़ से होड़ करके
तुम्हारे पास आता हूँ.
मंदिर की घंटियाँ
बजतीं, चुप हो जातीं
मेरा मन बज उठाता
भीड़ में
एकांत में
सुनने नदी के तट पर जाता हूँ
बहती है
जंगल के बीच से
कभी शांत
कभी कलल-कलकल
कलल-कलकल
ध्वनि करती हुई वह.
1 comment:
मेरे गीत कल सुनने आ जाना॥
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