Sunday 2 October 2011

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की सरकारी उपेक्षा

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा हिन्दी की स्वैच्छिक संस्थाओं में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है. यही अकेली ऐसी हिन्दी संस्था है जिसे विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त है (राष्ट्रीय महत्त्व की संस्था). लेकिन इस संस्था के कुल सचिव प्रो.दिलीप सिंह जी (जो मेरे श्रद्धेय गुरु हैं) के लेख में यह पढ़कर बहुत दुःख हुआ, शरम भी आई कि राष्ट्रीय महत्त्व की इस संस्था के प्रति सरकार और जनता दोनों का रुख अत्यंत उपेक्षापूर्ण है.क्या हम इन्टरनेट पर इस संबंध में कोई हस्ताक्षर अभियान नहीं चला सकते? हिंदी भारत के माध्यम से देश के कर्णधारों के कानों तक यह माँग पहुँचाने का कोई तो रास्ता होगा कि सरकार इस तरह हिंदी संस्थाओं और हिंदी को अब और अपमानित न करें.

2 comments:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

एक ओर तो हिंदी के नाम पर करोडों रुपये सरकार बांट रही है और दूसरी ओर जो सच्ची लगन से काम कर रहे हैं, उनको निरुत्साहित किया जा रहा है। मुक्तिबोध का वह वाक्य याद आ रहा है- तुम्हारी पालिसी क्या है कामरेड॥

डॉ.बी.बालाजी said...

@ chandra mouleshwar jee

dhanywaad sir.