Friday 9 September 2011

गणेश मंडप-विचार विमर्श-2


@ चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी.
नमस्कार सर.

मैं आपकी इस बात से पूरी तरह से सहमत हूँ कि गणेश जी के मंडपों पर 'कान-फोडू बाजे-गाजे' से अवश्य आस-पड़ोस के लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. मैं भी इस प्रकार के आयोजन के विरुद्ध हूँ. लेकिन भक्ति -भजन हो, मधुर संगीत हो मैं उसकी प्रसंसा भी अवश्य करना चाहता हूँ. जिस तरह दशहरा, रमजान और होली के त्यौहार लोगों के मेल मिलाप बढ़ाते है मैं गणेश उत्सव को उसी की एक कड़ी के रूप में देखता हूँ.

हाँ, यह भी सही है कि इस कार्य के लिए काफी बड़ी मात्रा में धन व्यय होता है. इस बात का समाधान यह हो सकता है कि गली-गली में गणेश स्थापना न करके सामूहिक रूप में कुछ स्थानों को तय करलिया जाए और सर्वसमति से, भक्तिभाव से, श्रद्धा पूर्वक गणेश जी की आराधना करें.

जिस समय बाल गंगाधर तिलक ने गणेश जी की स्थापना को सार्वजनिक रूप में मनाने का विचार बनाया होगा उनके सामने लक्ष्य आजादी थी. आज उस आजादी को बनाए रखने के माध्य के रूप में इस उत्सव को मनाया जाना चाहिए.

धन्यवाद.

2 comments:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

जिस समय बाल गंगाधर तिलक ने यह उत्सव शुरू किया तो लक्ष्य आज़ादी का था और अब लक्ष्य उस आज़ादी का है जो हमे कुछ भी करने से नहीं रोक सकता। पुलिस का ‘फ़तवा’ भी काम नहीं करता। पर्यावरण की चिंता भी काम नहीं आती। अगले वर्ष इससे बडा गणेश बैठेगा खैरताबाद में, इसए अधिक गणपति डाले जाएंगे हुसैन सागर में भले ही विनायक सागर का नाम देकर उसे बंद करने की साजिश रची जा रही हो:( जिस भक्ति से गणपति की पूजा की जाती है, उतने ही निरादर से उनकी प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है!!! इसे कुछ भी कहें पर भक्ति और श्रद्धाभाव तो नहीं ही कहा जाएगा॥

डॉ.बी.बालाजी said...

धन्यवाद सर.
गणेश जी के बहाने सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम के आडंबर पर अच्छी चर्चा चली.
हुसैन सार का केवल नाम ही नहीं काम भी बदलने की आशा है.निकट भविष्य में ही ऐसा हो, श्री गणेश जी से प्रार्थना है.