Friday 19 August 2011

और भीतर

वह उससे कभी बहस में नहीं जीत पाएगा
वह उससे बहुत छोटा है
कद उसका उससे छोटा है
पद उसका छोटा है
वह विशालकाय है.

एक शिला खंड निर्मित हो रहा है
उसके इर्द-गिर्द
तनाव का
कार्यकुशलता का
साबित करने का
उसे उसकी बेवजह हँसी
जमीन के भीतर
और भीतर,
और भीतर;

और भीतर
दफनाने की साजिश लगती है.

वह निश्चिंत है
धरती के गर्भ से निकलते अंकुर देख रहा है
वह.
('अन्ना हजारे' को समर्पित)

1 comment:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

इस अंकुर को निकलने के लिए वह शायद धरती में धंस जाय :(