Wednesday 20 July 2011

ये टहनियाँ

ये टहनियाँ
कितनी सूखी हुई हैं
पक्षियों का भार
वहन करने का सामर्थ्य
नहीं दीखता इनमें.

पेड़ के नीचे
कईं टहनियाँ टूटी पडी हैं.

ये टहनियाँ अपनी
जवानी की कथा
बुढ़ापे की व्यथा सुनाती हैं.

होम हो कर
अपनी सार्थकता सिद्ध
करने के लिए
आतुरता से प्रतीक्षा करती है.

2 comments:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

अब माचिस की प्रतीक्षा है:( सुंदर कविता के लिए बधाई भाई बालाजी॥

डॉ.बी.बालाजी said...

@चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी
प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद सर.