कितनी सूखी हुई हैं
पक्षियों का भार
वहन करने का सामर्थ्य
नहीं दीखता इनमें.
पेड़ के नीचे
कईं टहनियाँ टूटी पडी हैं.
ये टहनियाँ अपनी
जवानी की कथा
बुढ़ापे की व्यथा सुनाती हैं.
होम हो कर
अपनी सार्थकता सिद्ध
करने के लिए
आतुरता से प्रतीक्षा करती है.
2 comments:
अब माचिस की प्रतीक्षा है:( सुंदर कविता के लिए बधाई भाई बालाजी॥
@चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी
प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद सर.
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