तकदीर अपनी सँवार लें सिक्का उछालके|
करोड़ों रुपया खर्च होता है मतदान में,
मंत्री जी का चुनाव करलो सिक्का उछालके| (आओ ..)
जेब खाली कर लेते हैं डॉक्टर इलाज में,
मरीज का हाल जान लो सिक्का उछालके| (आओ ..)
किरकिट मैच खेले क्यूं बेकार थक जाएँगे,
हार-जीत का करो फैसला सिक्का उछालके| (आओ ..)
चीटिंग की तैयारी करवाते हो क्यूँ मास्टरजी,
पास-फेल का रिजल्ट बतादो सिक्का उछालके| (आओ ..)
आओ करें हम फैसला सिक्का उछालके,
तकदीर अपनी सँवार लें सिक्का उछालके|
2 comments:
बढिया कविता... यह हम कह रहे हैं सिक्का उछाल के :)
@ चन्द्र मौलेश्वर प्रसाद
धन्यवाद सर. अब आप भी सिक्का उछालने लगे.
आप को कविता की परख करने के लिए सिक्का उछलने की क्या जरूरत है भला. आप तो बिना सिक्का उछाले ही बता सकते हैं.
सुप्रभात.
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